ढाल स्तम्भन का मंत्र बहुत ही प्राचीन मंत्र हे, आज के इस समय में इस मंत्र का उपयोग ना के बराबर होता हे क्योकि अब ढाल का कही भी उपयोग नहीं होता हे,प्राचीन काल में और जब राजाशाही हुआ करती थी तब ढाल का इस्तेमाल सैनिक और राजा किया करते थे तब ढाल स्तम्भन मंत्र का प्रयोग किया जाता था,उस काल में राजा और सेनापति अपने दरबार में तांत्रिक और अघोरी रखते थे जिसकी मदद से वो तंत्र क्रिया करते थे,
साधक मित्रो के सिर्फ ज्ञान हेतु ये साधना दी हे की उसको पता चले की पहले ऐसा भी कुछ तांत्रिक होते थे जो दुश्मन पक्ष की ढाल को आसानी से बाँध देते थे,इस पोस्ट में हम विस्तार से जानेंगे इसकी सिद्धि और विधि विधान के बारे में.
मंत्र
ॐ चौंसठ जोगिनी बावन वीर, छप्पन भैंरूं सत्तर पीर, आया बैठ ढाल के तीर, हाली हलै न चाली चलै, वादी वाद शत्रु सों मेले या ढाल ले चले तो जाहर पीर की दुहाई फिरे। शब्द सांचा पिण्ड काचा फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।
विधि विधान और प्रयोग
शत्रु ने जिसे ढाल बनाया हो, तो इस मंत्र को एक हजार आठ बार पढ़कर पहले मंत्र को सिद्ध करें। फिर कंकड़ी पर एक सौ आठ बार मंत्र पढ़कर, वह कंकड़ी ढाल पर मारें तो शत्रु की ढाल का स्तंभन हो जाएगा।
ये मंत्र शाबर मंत्र हे और इस मंत्र के अन्दर कई शक्ति चलती हे जब इसकी साधना करने बैठो तो सामने एक सरसों के तेल का दीपक जलाये और रुद्राक्ष की माला से उपर्युक्त मंत्र का जाप करे, उपर्युक्त मंत्र आप १००८ बार या २१०० बार भी जाप कर सकते हो पर ध्यान ये रखे की मंत्रजाप आपको एक ही बैठक में पुरे करने पड़ेंगे,और फिर जब ग्रहण काल हो या नरक चतुर्दशी हो तब उपर्युक्त मंत्र को ७ माला करके सिद्ध कर ले ताकि मंत्र जागृत रहे,
इस तरह साधक ढाल स्तंभन का मंत्र को सिद्ध करके और उपयोग करके ढाल को आसानी से बाँध सकता हे.
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