भैरव बाबा के बहुत सारे प्रकार होते हे और भैरव हर शक्ति के साथ चलता हे कोई भी शक्ति भैरव के बिना नहीं चलती, आज में आपको भैरव के बाल स्वरुप यानि की बटुक भैरव के बारे में बताने वाला हु, आज में साधक मित्रो के लिए बटुक भैरव कार्य सिद्धि मंत्र लेकर आया हु जिसको सिद्ध करके आप हर कार्य में सफलता प्राप्त कर सकते हो,
तो चलिए विस्तार से जानते हे बटुक भैरव कार्य सिद्धि मंत्र कैसे सिद्ध होता हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
श्री बटुक भैरव
भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है।
साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है धर्मग्रन्थों के अनुशीलन से यह तथ्य विदित होता है कि भगवान शंकर के कालभैरव-स्वरूप का आविर्भाव मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की प्रदोषकाल-व्यापिनीअष्टमी में हुआ था, अत:यह तिथि कालभैरवाष्टमी के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन भैरव-मंदिरों में विशेष पूजन और श्रृंगार बडे धूम-धाम से होता है। भैरवनाथ के भक्त काल भैरवाष्टमी के व्रत को अत्यन्त श्रद्धा के साथ रखते हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी से प्रारम्भ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रदोष-व्यापिनी अष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा, दर्शन तथा व्रत करने से भीषण संकट दूर होते हैं और कार्य-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। पंचांगों में इस अष्टमी को कालाष्टमी के नाम से प्रकाशित किया जाता है।
शनि के प्रकोप का शमन भैरव की आराधना से होता है। भैरवनाथ के व्रत एवं दर्शन-पूजन से शनि की पीडा का निवारण होता हे। कालभैरव की अनुकम्पा की कामना रखने वाले उनके भक्त तथा शनि की साढेसाती, ढैय्या अथवा शनि की अशुभ दशा से पीडित व्यक्ति काल भैरवाष्टमी से प्रारम्भ करके वर्ष पर्यन्त प्रत्येक कालाष्टमी को व्रत, भैरवनाथ की उपासना करें।
कालाष्टमी में दिन भर उपवास रखकर सायं सूर्यास्त के उपरान्त प्रदोषकाल में भैरवनाथ की पूजा करके प्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है।
इस तरह साधक बटुक भैरव कार्य सिद्धि मंत्र को सिद्ध करके अपने कार्य को सिद्ध कर सकता हे और बटुक भैरव की कृपा दृष्टी पा सकता हे.
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