माँ कामाख्या आरती हररोज करने से माता की कृपा दृष्टी आप पर बनी रहेती हे, माता कामाख्या को तंत्र की देवी शक्ति माना जाता हे, साधक साधना से पूर्व और साधना के बाद माँ कामाख्या आरती करके माता को प्रसन्न कर सकता हे,
आरती कामाक्षा देवी की। जगत् उधारक सुर देवी की।। आरती….
गावत वेद पुरान कहानी। योनिरूप तुम हो महारानी।।
सुर ब्रह्मादिक आदि बखानी। लहे दरस सब सुख लेवी की।। आरती…. दक्ष सुता जगदम्ब भवानी। सदा शंभु अर्धग विराजिनी। सकल जगत् को तारन करनी। जै हो मातु सिद्धि देवी की।। आरती….. तीन नयन कर डमरु विराजे। टीको गोरोचन को साजे।
तीनों लोक रूप से लाजे। जै हो मातु! लोक सेवी की।। आरती…. रक्त पुष्प कंठन वनमाला। के हरि वाहन खंग विशाला। मातु करे भक्तन प्रतिपाला। सकल असुर जीवन लेवी की।। आरती.. कहैं गोपाल मातु बलिहारी। जाने नहिं महिमा त्रिपुरारी। सब सत होय जो कह्यो विचारी। जै जै सबहिं करत देवी की। आरती…. दो।
ब्राह्मण शूद्र से भक्तवत्सल भगवती कामाख्या के विषय में सत्य घटना- एक ब्राह्मण शूद्र के कर्जदार थे। वह अपना ऋण चुकाने में असमर्थ थे।
एक दिन शूद्र ने कहा कि कर्ज के बदले में अपनी कन्या मुझे दे ने कुछ दिनों का समय मांगा। ब्राह्मण ने माँ कामाख्या के यहाँ जाकर प्रार्थना की। तब देवी की आज्ञा हुई कि उस शूद्र से कहना कि अमुक मंगलवार को कन्या आकर ले जाये। मैं उस दिन वहाँ आकर कन्या का उद्धार करूंगी। ब्राह्मण ने शूद्र से ऐसा ही कहा। निर्धारित समय जब शूद्र कव्या लेने के लिये आया तब वहाँ अर्जेको चीलें प्रकट हो गयीं, जिन्होंने उस शूद्र तथा उसके दल को इतना तंग किया कि वे अपनी जान बचाकर वहां से भाग गये। उस कन्या को शरीर से देवी ने ले लिया और वह अदृश्य हो गयी। यह बहुत प्रसिद्ध घटना है और उस प्रान्त के सब लोग इस घटना को भली भांति जानते हैं। जिला पुर्निया के कामाक्षा-स्थान की यह घटना है। उक्त स्थान पुर्निया से दक्षिण और काढगोला से उत्तर है। वहाँ एक संस्कृत पाठशाला भी है।
पूजनार्चन फल-
भगवती के विग्रह को भक्तिमय पंचामृत से स्नान कराने वाला मनुष्य भगवती के सायुज्य को प्राप्त करता है एवं शान्ति पुष्टि दोनों का लाभ होता है। जो मनुष्य लाल गन्ने के रस से भरे हुए सैकड़ों कलशों से भगवती को स्नान कराता है। वह आवागमन से रहित हो जाता है। जो मनुष्य आम, मुनक्का अथवा अंगूर के रस से देवी का अभिषेक करता है, वह देवलोक को जाता है। जो पुरुष कपूर, केसर, अगर, कस्तूरी, कमल अथवा अन्य सुगन्धित पुष्पों के सुवासित जल से भगवती को स्नान कराता है, उसके सैकड़ों जन्मों पापकर्म स्वाहा हो जाते हैं। जो दूध भरे कलश से देवी को स्नान कराता है वह क्षीर सागर में निवास करता हैं। दही से स्नान कराने से दधिसागर या दधिकुण्ड का अधिपत्य प्राप्त होता है। त्रिमधु से स्नान कराने से वशीकरण कार्य में सफलता तथा परम सौभाग्यागमन होता है।
सहस्रों कलशों से देवी को स्नान कराने से परमसुख की प्राप्ति तथा अन्त में परमधाम प्राप्त होता है। सुन्दर रेशमी वस्त्र अर्पित करने से वायुलोक में स्थान प्राप्त होता है। रत्ननिर्मित भूषण अर्पण करने से धनधान्य का विशेष लाभ होता है। भगवती के मस्तक पर चन्दन तथा कस्तूरी की बिन्दी लगाने से इन्द्रासन प्राप्त होता है। उत्तम फल एवं सुगन्धित पुष्प चढ़ाने वाला मनुष्य अन्त में कैलास में सुखपूर्वक निवास करता हैं। बिल्वपत्र अर्पित करने से सर्व क्लेश शान्त होते हैं तथा महादेव का आशीष प्राप्त होता है। बिल्वपत्र पर रक्त चन्दन से स्पष्ट अक्षरों में क्षौं’ लिखकर,
‘क्षी ॐ ॐ वषट् ठः ठः’
मंत्र से महामाया कामाख्या के श्रीचरणों में अर्पित करने वाला मनुष्य राजराजेश्वर होता है। इसी प्रकार एक करोड़ बिल्वपत्र देवी को अर्पित करने वाला मनुष्य ब्रह्माण्ड का अधिपति हो जाता है। इसी प्रकार ऋतुनुसार सुन्दर रूप वाले, गुण वाले, सुगन्ध वाले स्वादिष्ट फल एवं पुष्पों के द्वारा सदैव भगवती की पूजा करनी चाहिये। सैकड़ो तथा हजारों दीपक प्रज्जवलित कर भगवती को अर्पित करने से सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। इस प्रकार पूजन उपरान्त अन्त में प्रचुरमात्रा में देवी को गंगाजल अर्पित करें। कपूर तथा नारियल युक्त कलश जल भी देवी को भेंट रूप में दें।
तत्पश्चात् मुख शुद्धि के लिये भगवती को ताम्बूल, लौंग, इलायची आदि अर्पण करें। इसके बाद वाद्यों की ध्वनि से लयपूर्वक स्तोत्र, मंत्र, चालीसा, पुराण, प्रार्थना, आरती एवं स्तुति से भगवती को संतुष्ट करें। जैसा समय एवं प्रबन्धन हो उसी के अनुसार
भगवती का भजन करें। त दोपरान्त श्रद्धामय माता भगवती को छन, चंवर एवं अन्य उपहार अर्पण करते हुए भगवती को वारंवार नमस्कार करते हुए उनसे क्षमा याचना करें। तंत्रोक्त एवं विधिवत् मंत्रानुष्ठान करने वाला मनुष्य संसार में सर्वसुखों का अधिकारी होता है।
माँ कामाख्या आरती करके साधक माता का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता हे उसकी सिद्धि हासिल कर सकता हे और उसकी कृपा दृष्टी पा सकता हे.
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