माता धूमावती दस महाविधा में आती हे और उसकी साधना षट कर्म करने के लिए की जाती हे ऐसा कोई काम नहीं हे जो माता धूमावती से ना होता हो, माता धूमावती की साधना करने से पहले साधक को धूमावती ध्यान करना जरुरी हे.
ये ध्यान, जो कि हिन्दू धर्म में एक देवी की अवतार है, एक ध्यान प्रणाली है जिसे ध्यान योग के माध्यम से अभ्यास किया जाता है। धूमावती ध्यान के माध्यम से आप धूमावती देवी की आध्यात्मिक एवं मानसिक सामर्थ्य को प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हैं। यह ध्यान प्रक्रिया धूमावती देवी के संबंधित गुणों और मानसिक स्थितियों को प्रबल करने में सहायता कर सकती है।
इस ध्यान को निम्नलिखित चरणों के माध्यम से अभ्यास किया जा सकता है:
स्थिरता:
एक शांत और निश्चित स्थान पर बैठें, जहां आपको न कोई व्याधियां तकलीफ दे रही हों और न ही कोई भ्रम उत्पन्न हो रहा हो।
श्वास ध्यान:
अपने ध्यान को अपनी सांसों पर केंद्रित करें। सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया को ध्यान से अनुसरण करें। अपने सांसों को गहराई से और स्वाभाविक ढंग से लें और छोड़ें।
मंत्र जाप:
“धूं” या “धूं धूं धूं” जैसे मंत्र का जाप करें। इसके माध्यम से, आप धूमावती देवी की ऊर्जा और शक्ति के साथ संवाद स्थापित कर सकते हैं।
मानसिक चित्रण:
ध्यान के दौरान, धूमावती देवी की ध्यान वस्त्र, मुद्रा, और आभूषणों को मानसिक रूप से चित्रित करें। उनके प्रतीक या मूर्ति का ध्यान करें।
अवधान:
ध्यान के दौरान जितना संभव हो सके, मन को धूमावती देवी की ऊर्जा, गुण, और स्वरूप में एकाग्र करें। विचारों को स्थिर रखने का प्रयास करें और अन्य विचारों को दूर करने की कोशिश करें।
इस ध्यान का अभ्यास नियमित रूप से किया जाना चाहिए ताकि आप इसके अधिक सामर्थ्य और लाभ प्राप्त कर सकें। यह ध्यान आपकी मानसिक स्थिति, स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक विकास में सहायता कर सकता है।
धूमावती ध्यान
विवर्णा चचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा ।
विमुक्तकुन्तला रूक्षा विधवा विरलद्विजा ।
काकध्वजरथारुढा विलम्बितपयोधरा।
शूर्पहस्तातिरक्षाक्षा धूतहस्ता वरान्विता ॥
प्रवृद्धघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा।
क्षुत्पिपासाहिता नित्यं भयदा कलहास्पदा ।
जपेत्कृष्णचतुर्दश्यां पुरश्चरणसिद्धये ॥
माता धूमावती की साधना करने से पहले साधक को उपर्युक्त धूमावती ध्यान करना चाहिए फिर जाकर साधना का प्रारम्भ करे.
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