रक्तचामुण्डा यक्षिणी

जो साधक मित्र वशीकरण क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता हे और वशीकरण करना चाहता हे उसके लिए रक्तचामुण्डा यक्षिणी साधना रामबाण इलाज हे क्योकि इस यक्षिणी की साधना करके आप किसीका भी वशीकरण चुटकी में कर सकते हो.

तो चलिए विस्तार से जानते हे रक्तचामुण्डा यक्षिणी साधना कैसे करते हे और उसके विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे.

योगिनी,   किन्नरी,  अप्सरा  आदि  की  तरह   ही यक्षिणियां भी मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति करती हैं।  साधारणतया 36 यक्षिणियां हैं तथा उनके वर देने के प्रकार  अलग-अलग  हैं। माता,  बहन या पत्नी के रूप में उनका वरण किया जाता है।  उनकी साधना के पहले  तैयारी  की  जाती  है, जो  अधिक कठिन है, बजाय साधना के।

पहले चान्द्रायण व्रत किया  जाता है। इस व्रत में प्रतिपदा को 1 कौर भोजन, दूज को 2 कौर इस प्रकार 1-1  कौर भोजन  पूर्णिमा तक करके पूर्णिमा के बाद 1-1  कौर कम करते  हुए व्रत किया जाता है। इसमें 1  कौर भोजन के अलावा  कुछ नहीं लिया जाता है। इससे कई जन्मों  के पाप कट जाते हैं।  पश्चात  16  रुद्राभिषेक किए  जाते हैं,  साथ में महामृत्युंजय 51 हजार तथा कुबेर यंत्र 51  हजार कर भगवान  भूतनाथ  शिवजी  से  आज्ञा ली जाती है। स्वप्न में यदि व्यक्ति के श्रेष्ठ कर्म हों तो भोलेनाथ स्वयं आते हैं या सुस्वप्न या कुस्वप्न  जिसे  गुरुजी बतलाकर  संकेत  समझकर प्रार्थना  की  जाती  है। कुस्वप्न होने पर साधना नहीं की जानी चाहिए। यदि की  गई  तो  फलीभूत नहीं होगी या फिर  नुकसान होगा। साधना के दौरान  ब्रह्मचर्य,  हविष्यान्न आदि का ध्यान रखता होता है।

रक्तचामुण्डा यक्षिणी

मंत्र

“ॐ सिद्धि रक्त चामुण्डे  धुरं धुरं अमुकी वशमानय स्वाहा ।”

साधन विधि-

इस रक्तचामुण्डा यक्षिणी मन्त्र से अभिमंत्रित गुड़हल के सहस्र फूलों से हवन करने पर राजा वशीभूत होता है। कनेर के सहस्र फूलों से हवन करने पर सब लोग वशीभूत होते हैं। कपूर के साथ सेवती के सहस्र फूलों का  हवन  करने से द्रव्य-प्राप्ति होती है । जुही  के सहस्र फूलों का हवन करने से पुत्र-प्राप्ति  होती  है । स्त्री का नाम लेकर हवन करने से स्त्री  की  प्राप्ति होती है। सेमल   के  सहस्र  फूलों  का  हवन करने  से शत्रु की मृत्यु तथा उच्चाटन होता है।

निवारी के सहस्र फूलों का हवन करने  से  शत्रु  का नाश होता है । सहस्र कमलों से हवन करने पर अकाल में बादल होकर वर्षा  होती है । ‘अमुक रोगी के रोग का नाश हो’ इस प्रकार   कहते हुए सहस्रकचनार  के  फूलों से हवन करने पर  रोगी का  रोग  नष्ट  होता है। अलसी के सहस्र फूलों  से हवन करने पर सबकी वृद्धि होती है तथा  मूगरा  के सहस्र फूलों से हवन करने  पर सुभिक्ष  होता है और वर्षा होती है। यह रक्तचामुण्डा यक्षिणी  मन्त्र’  अनेक प्रकार  की  अभि- लाषाओं  को पूर्ण करने वाला  है। मन्त्र में जिस स्थान पर ‘अमुक’ शब्द आया है,  वहाँ साध्य व्यक्ति के नाम का उच्चारण  करना  चाहिए।

इस तरह साधक रक्तचामुण्डा यक्षिणी साधना करके उसकी सिद्धि हासिल कर सकता हे.

यह भी पढ़े

हनुमान साधना

वशीकरण साधना

महाकाली साधना

मोहिनी विधा

भैरव साधना

 

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here