मेने इस पोस्ट में कढाई बाँधने का मंत्र और हांड़ी में आग न लगे उसका मंत्र डाला हे जिसकी मदद से साधक कढाई बाँध सकता हे,पेहले के समय में तांत्रिक लोग और जादूगर कढाई बांधके लोगो को कीमिया दिखाते थे क्योकि उसके पास कढाई बांधने का मंत्र था,
कढ़ाई बांधने का मन्त्र-
ॐ नमो जल बांधू जल बाई-याई बांधू बांधू तूंबा ताई नौ से गांव का वीर बुलाऊं रहो रे कढ़ाई जती हनुमंत की दुहाई।
विधि-
ऊपर जो मंत्र हे वो अति प्राचीन शाबर मंत्र हे और खुद आजमाया हुआ भी हे कई बार मेने इस मंत्र का प्रयोग करके कढाई को बाँधा भी हे,
इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए साधना रविवार से प्रारंभ करे सुबह और शाम इस मंत्र की २१ माला करे,साधना के दरमियाँन सुगधित धूपबत्ती और चमेली के तेल का दीपक प्रज्वलित करे और हो सके तो साधना के दरमियान ब्रह्मचर्य का पालन करे ये साधना २१ दिन तक करे मंत्र सिद्ध हो जायेगा.
प्रयोग
सात कांकरी २१ बार मंत्रि के कढ़ाई पर मारे कढाई बंध जाय उतारे तो।
हांड़ी में आग न लगे-
मंत्र
मंत्र काची हांड़ी काची पाली ऊपर वजा की थाली नीचे भैरू किल कलाय ऊपर नृसिंह गाजे जो इस हांड़ी के आंच लगे तो अंजनी पुत्र लाजे दुहाई हनुमंत जती की दुहाई अंजनी पुत्र की शब्द सांचा पिंड काचा।
विधि
उपर्युक्त मंत्र को सिद्ध करने के लिए साधना मंगलवार से शुरू करे हररोज ५ माला करे,रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करे,उपर्युक्त मंत्र शाबर मंत्र हे और जागृत मंत्र हे इसको सिर्फ ११ दिन तक साधना करे,मंत्र सिद्ध होने के बाद एकबार गुरु की देखरेख में ही प्रयोग करे फिर जाके खुद साधक अकेला प्रयोग करे.
प्रयोग
नमक अथवा ठीकरा पर ७ बार मंत्रि के चूल्ला में डाले हांड़ी न पके।
हांड़ी में आग न लगे मंत्र की संपूर्ण विधि विधान के साथ ही साधना का प्रारंभ करे और हो सके तो दोनों मंत्र गुरु की देखरेख में ही सिद्ध करे.
इस तरह साधक कढाई बाँधने का मंत्र को सिद्ध करके साधक कढाई बाँध सकता हे और साथ साथ हांडी में आग ना लगे मंत्र का भी उपयोग कर सकता हे.
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