आज आपके समक्ष वीर विरहना साधना लेकर आये हे ये साधना आप बंद कमरे में या एकांत जगह पर कर सकते हो,इसकी सिद्धि एकबार मिल जाने से आप हर प्रकार के तांत्रिक प्रयोग कर सकते हो कोई भी षट कर्म आसानी से कर सकते हो,
चलिए इस पोस्ट में विस्तार से जानते हे की वीर विरहना साधना कैसे होती हे और उसको कैसे चलाया जाता हे.
मंत्र
वीर विरहना फूल विरहना धुं धुं कर सवा सेर का तोसा खाय अस्सी कोस का धावा करे सात के कुतक आगे चले सात सै कुतक पीछे चले, सै जिसमें गढ़ गजना का पीर चले और ध्वजा टेकात चले, सोते को जगावता चले, बैठे को उड़ावता चले, हाथों में हथकड़ी गेरे पैरों में बेड़ी गेरे, मांही पाठ करे मुरदार मांही पीठ करे, कलाबोन नवी याद करे। ॐ ॐ ॐ नमः ठः ठः ठः स्वाहा।
सिद्ध करने का विधान
वीर विरहना साधना द्वारा सिद्ध कर लिए जाने पर वह साधक की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करता है और सदैव उसके समीप रहकर उसकी रक्षा करता हुआ हर प्रकार के सुख प्रदान करता रहता है। उपर्युक्त मंत्र का ग्रहण की रात्रि में एक सौ आठ बार जप करके चमेली के पुष्प आदि चढ़ाने की प्रक्रिया करें तथा नैवेद्य धूप में सवा सेर आटे का शुद्ध देसी घी से बना हुआ हलुवा अर्पित करें। इस प्रकार चालीस दिन के जप के बाद वीर विरहना साधक के सामने प्रकट हो जाता है। उस समय साधक हाथ जोड़कर प्रणाम करे, मन की इच्छा को प्रकट करे। वीर विरहना उसकी सभी इच्छाओ को पूर्ण कर देता है।
४० दिन तक निति-नियम और श्रद्धा के साथ साधना करे और ये साधना गुप्त ही रखे कोई भी साधना करो आपको उस साधना को गुप्त ही रखना चाहिए,साधक इस सिद्धि के जरिये जनहित के कार्य कर सकता हे,जनकल्याण के कार्य कर सकता हे,
उपर्युक्त मंत्र की सिद्धि से साधक कोई भी षट कर्म आसानी से कर सकता हे,उसके लिए कोई भी तंत्र क्रिया कठिन रहती,इस तरह साधक वीर विरहना साधना करके सिद्धि हासिल कर सकता हे.
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