राज्यदाता यक्षिणी साधना

राज्यदाता यक्षिणी साधना प्राचीन काल में यानि की हमारे हन्दुस्तान में जब राजशाही हुआ करती थी तब इसकी साधना करते थे,इस साधना करने का एक ही उद्देश्य था की किसी राज्य पर अपना कब्ज़ा बना सके या उस राज्य को हासिल कर सके,

कई ऐसे राजा और कई ऐसे लोग थे जो राज्यदाता यक्षिणी की सिद्धि करके राजाधिराज बनते थे,राज्यदाता यक्षिणी तो वेसे तत्काल प्रसन्न होने वाली यक्षिणी की श्रेणी में नहीं आती उसको सिद्ध करने के लिए बहुत महेनत और साधना की आवश्यकता पड़ती हे तब जाके वो साधक पर प्रसन होती हे,

सुख,वैभव और राज्य के लिए इस यक्षिणी की साधना की जाती हे एक बार ये यक्षिणी सिद्ध हो गई तो वो साधक को इच्छित वर देती हे और उसकी हर मनोकामना पूर्ण करती हे, तो चलिए विस्तार से जानते हे राज्यदाता यक्षिणी की सिद्धि कैसे होती हे और उसके निति नियम क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे.

राज्यदाता यक्षिणी साधना

मंत्र-

“ॐ ह्रीं नमः।”

साधन विधि-

अंकोल वृक्ष पर बैठकर उक्त मंत्र का एकाग्रचित्त  से १००००० जप करने से राज्यदाता यक्षिणी साधक  पर प्रसन्न होकर, उसे राजाधिराज बनाती है।

ये साधना एक दिन में सम्पन्न नहीं होती अगर आप बिना उठे साधना करेंगे तो ही ये साधना सम्पन्न होगी अगर आपसे ये साधना एक दिन में सम्पन्न न हो पाए तो आपको वही पर ही सो जाना हे घर वापिस ना आये,आप अपनी क्षमता अनुसार ३ दिन में साधना पूर्ण कर सकते हो,जहा आप साधना कर रहे हो वो जगह एकांत होनी चाहिए और किसीका आनाजाना नहीं होना चाहिए ३ दिन में इस साधना को सम्पूर्ण करने से राज्यदाता यक्षिणी सपने में या छाया के रूप में आकर आपको इच्छित वर देती हे जब यक्षिणी प्रगट होकर सामने आये तो उसको वचन में बांधकर अपने मन की बात बताये,

इसी तरह राज्यदाता यक्षिणी साधना करके साधक अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे.

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